जलवायु-प्रतिरोधी बीज किस्में: भारतीय किसानों के लिए वरदान
भारत का कृषि क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के कारण अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रहा है। अनियमित मानसून, लंबे समय तक सूखा, असमय बारिश और अत्यधिक गर्मी ने पारंपरिक खेती के तरीकों को अस्थिर बना दिया है। इन चुनौतियों से निपटने के लिए, वैज्ञानिक और कृषि विशेषज्ञ जलवायु-प्रतिरोधी बीज (Climate-Resilient Seeds) विकसित कर रहे हैं, जो लाखों भारतीय किसानों के लिए उम्मीद की किरण बन रहे हैं।
जलवायु-प्रतिरोधी बीजों की आवश्यकता बढ़ते वैश्विक तापमान और अस्थिर मौसम के कारण पारंपरिक बीज किस्में अपेक्षित पैदावार नहीं दे पातीं। किसानों को अपर्याप्त वर्षा, अत्यधिक गर्मी या बाढ़ के कारण फसल नुकसान का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए शोधकर्ता आनुवंशिक रूप से उन्नत बीज विकसित कर रहे हैं, जो कठोर परिस्थितियों का सामना करने के साथ-साथ उच्च पैदावार और गुणवत्ता बनाए रखते हैं।
जलवायु-प्रतिरोधी बीजों में हालिया प्रगति भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) और विभिन्न राज्य कृषि विश्वविद्यालयों सहित कई कृषि अनुसंधान संस्थानों ने चावल, गेहूं, दलहन और तिलहन जैसी प्रमुख फसलों के लिए उन्नत बीज किस्में विकसित की हैं। कुछ प्रमुख विकास इस प्रकार हैं:
- सूखा-रोधी चावल: वैज्ञानिकों ने सहभोगी धान (Sahbhagi Dhan) और DRR धान 44 जैसी किस्में विकसित की हैं, जो कम पानी में भी अच्छी उपज देती हैं।
- गर्मी-सहिष्णु गेहूं: HD 2967 और DBW 187 जैसी किस्में उच्च तापमान सहन कर सकती हैं और उत्पादकता बनाए रखती हैं।
- बाढ़-रोधी धान: स्वर्णा-सब1 (Swarna-Sub1) नामक धान की किस्म पानी में दो सप्ताह तक जीवित रह सकती है, जो बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के लिए आदर्श है।
- कीट-प्रतिरोधी दलहन: पूसा 10216 और IPM 2-3 जैसी नई मसूर और चना किस्में प्रमुख कीटों और बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हैं, जिससे कीटनाशकों का कम उपयोग करना संभव होता है।
सरकारी पहल और किसानों द्वारा अपनाने की प्रवृत्ति भारत सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM) और प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY) जैसी योजनाओं के माध्यम से जलवायु-प्रतिरोधी बीजों के उपयोग को बढ़ावा दे रही है। किसानों को इन उन्नत किस्मों को अपनाने के लिए सब्सिडी और जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
निजी बीज कंपनियां और एग्रीटेक स्टार्टअप्स भी अनुसंधान संस्थानों के साथ मिलकर इन बीजों को छोटे और सीमांत किसानों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
कार्यान्वयन में चुनौतियां इन बीजों के लाभों के बावजूद, इन्हें अपनाने में कुछ बाधाएं हैं। सीमित जागरूकता, उच्च बीज लागत और पारंपरिक किसानों में नई कृषि तकनीकों के प्रति झिझक मुख्य चुनौतियां हैं। इसके अलावा, सही बीज वितरण सुनिश्चित करना और नकली बीजों को बाजार में आने से रोकना भी महत्वपूर्ण है।
भविष्य की संभावनाएं भारतीय कृषि का भविष्य जलवायु-प्रतिरोधी बीज किस्मों को व्यापक रूप से अपनाने पर निर्भर करता है। निरंतर अनुसंधान और सरकारी समर्थन के साथ, भारत अपनी बढ़ती आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है और किसानों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचा सकता है। बीज आपूर्ति श्रृंखलाओं को मजबूत करना, किसान शिक्षा कार्यक्रम बढ़ाना और जैव-प्रौद्योगिकी में निवेश करना इस परिवर्तन की कुंजी होगी।
निष्कर्ष जलवायु-प्रतिरोधी बीज किस्में भारतीय कृषि की स्थिरता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं। वैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और किसानों के सामूहिक प्रयासों से, भारत एक जलवायु-लचीला कृषि तंत्र विकसित कर सकता है, जो जलवायु अनिश्चितताओं का सामना कर सके और आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करे।